Monday, 21 March 2016

चले जावेद अख्तर "अनुपम खेर" बनने



जावेद अख्तर साहब , मुझे आपके "भारत माता की जय" बोलने पर कोई आपत्ति नहीं है , यह आपका कर्तव्य है या कि आपकी इच्छा या आपका अधिकार, वो आप समझिए पर जैसे आप बोलने के लिए स्वतंत्र हैं वैसे ही दूसरे के बोलने की स्वतंत्रता पर सवाल मत उठाईये और "अनुपम खेर" बनने के प्रयास में पैजामें से बाहर मत होईये।
आप उर्दू अदब की मशहूर हस्ती कैफी आज़्मी के दामाद हैं तो उसी उर्दू तहज़ीब की दो हस्तियाँ जानेसार अख्तर और सफिया अख्तर के बेटे भी हैं , ये तो छोड़िए आप उर्दू की शानदार शख्सियत मुज़्तर खैराबादी के पोते भी हैं जिन पर उर्दू गर्व करती है , फिर भी आपने अपनी आज़ादी का प्रयोग करके सीना ठोक ठोक कर कहा कि "आप नमाज़ नहीं पढ़ते"।
टीवी पर आपको मैने तमाम बार देखा है सीना ठोकते हुए कि आप "नास्तिक" हैं । तो किसी ने आज तक सवाल नहीं किया आपसे कि आप नमाज़ क्युँ नहीं पढ़ते या आप इमान क्युँ नहीं लाए , क्युँकि यह आपकी आज़ादी है कि आपका इमान क्या है और कितना है।
अवसरवाद आपका प्रमुख अस्त्र रहा है इसलिए राज्यसभा के विदाई भाषण में आपने फिर से राज्यसभा में आने के लिए जो अनुपम खेर बनने की कोशिश की , उस पर भी स्पष्ट हो जाएँ कि आप जावेद अख्तर हैं अनुपम खेर नहीं । और बहुत मुश्किल है आज के दौर में जावेद अख्तर सा नाम , हिन्दुस्तान में होना ।
शाहरुख खान का नाम सुना होगा आपने ?
उन्होंने अपने घर में मंदिर बनाया है और पूरे परिवार के साथ वहाँ पूजा करते सारा जीवन फोटो खिंचाते रहे हैं , पर क्या हुआ उनका ?
देश की असहिष्णुता की लाखों लोगों ने आलोचना की पर शाहरुख खान का बोलना उनको समझा गया कि वह मुसलमान नाम के हैं।
आमिर खान ?
याद है नाम ? ब्राह्मण पत्नी का डर बता देना आजतक भारी पड़ा हुआ है उनके लिए कि बराबर करते फिर रहे हैं क्युँकि वह मुसलमान नाम के हैं। सालों तक बिना पैसे लिए Incredible India के Brand Ambassador बन कर भारत के tourism को खूब बढ़ावा दिया, सत्यमेव जयते से समाज में जाग्रति लाये पर मुसलमान होना भारी पड़ गया
खालिद उमर ?
वह भी कम्युनिस्ट ही है आपकी ही तरह जिसे 10 साल बाद पता चला कि वह मुसलमान है ।
सब तो छोड़िए, सलमान खान , देश के प्रधानमंत्री के साथ पतंगे उड़ाईं हैं , उनके सरकारी मेहमान रहे हैं ।
और जावेद अख्तर साहब ?
जो आज आप कर रहे हैं ना वो वह बाप बेटे लोग सालों से करते रहे हैं, यहाँ तक कि "गणपति" को अपने घर में स्थापित करके "गणपति बप्पा मोरया" हर साल करते रहे हैं और विसर्जन करते रहे हैं ।उनको कभी नमाज़ पढ़ते नहीं देखा गया पर गणपति की पूजा करते और विसर्जित करते हर साल देखा गया।
याकूब मेमन के फाँसी का विरोध इस देश में करोड़ों ने किया पर "सलमान खान" होना उनको भारी पड़ गया, गालियाँ खाकर मजबूरी में ट्वीट हटाने पड़े और सफाई देनी पड़ी ।
जावेद अख्तर साहब जब यहाँ बिकाऊ और उन्मादी भीड़ "अखलाक" की तरह घेर लेती है ना ? तो वह यह नहीं देखती कि आप कम्युनिस्ट हैं या "भारत माता की जय" बोलने वाले , नाम मुसलमान होना बहुत है "अखलाक" की तरह कूँच देने के लिए ।
आपको यकीन ना हो तो शाहरुख , सलमान , आमिर और खालिद उमर से पूछ लें जो आप की ही तरह बस नाम के ही मुसलमान हैं ।
इसलिए बेहतर होगा आप अनुपम खेर बनने का प्रयास ना करिए, आपको भारत माता की जय बोलना है बोलते रहिए पर आप मुझे मेरे एक सवाल का जवाब जरूर दे दीजिएगा कि संसद के पहले आपने आखरी बार "भारत माता की जय" कब कहा था ?
शायद कभी नहीं ।
ड्रामे का रचनाकार ड्रामा ही करेगा ।

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