Sunday, 8 May 2016

मुसलमानों को साथ लेकर सबके लिए आंदोलन, मुसलमानों के लिए सिर्फ बोलबच्चन

हम कन्हैया के साथ थे, हम रोहित वेमुला के साथ थे, हम अन्ना के साथ थे, हम सोनी सुरी के साथ थे, हम जेएनयु के साथ थे और हम रविश के साथ थे.आज आतंकवाद के नाम पर फर्जी तरीके से हमारी गिरफ्तारी हो रही है. आज हम अकेले है. हमारे साथ न कोई कन्हैया है, न कोई वेमुला, न कोई सुरी, न कोई जेएनयु और नहीं कोई रविश है. हम कल भी अकेले थे, आज भी अकेले है और शायद कल भी अकेले ही रहेंगे. हमने कल भी मजलुमों का साथ दिया था, आज भी दे रहे है और कल भी देते रहेंगे.

यह बात बलकुल सही है. यह सच सुनकर कई लोग आगबबुला भी हुए होंगे और कई स्वघोषित मुस्लिम हितचिंतको के पिछवाड़े भी जल गए होंगे. जो लोग अपने आप को फेमस करने के लिए असाम जाकर वहांके आपदाग्रस्त लोगो को वडापाँव बांटकर आये ऐसे लोग भी बेगुनाह मुसलमानों की गिरफ्तारियां और 15-20 साल बाद रिहाई के मुद्दे पर अपनी जुबाने locker  में रखे हुए है. जब कोई सोशल मीडिया पर या आमना सामना सवाल पूछता है तो कहते है हमारे हाथ में सत्ता दो हम करेंगे.  साले सब धोखीबाज है. 

रोहित वेमुला के नेशनल लेवल पर आंदोलन किया जाता है जिसमे मुसलमानों का भरपूर साथ सहयोग होता है.  कन्हेया के लिए आंदोलन किया जाता है उसके साथ भी मुसलमानों का सहयोग होता है. सोनी सोरी के लिए आंदोलन किया जाता है उसमे भी मुसलमान आगे होता है. आरक्षण के लिए आंदोलन किया जाता है, मुसलमानों को तो मिलता नहीं लेकिन दूसरो को दिलाने के लिए मुसलमानों का साथ और असहयोग होता है. जब मुसलमानों की बात आती है तो अकेला मुसलमान ही लढता है. जेएनयू के लिए आंदोलन सभी मुसलमानों का साथ सहयोग.  हर आंदोलन में, हर कार्य में मुसलमानों का साथ सहयोग होता है. लेकिन मुसलमानों के साथ ही कोई नहीं होता.

डीएसपी जिया-उल-हक़ मारा गया कोई आंदोलन नहीं.
पुणे में मोहसिन शेख की हात्या कोई आंदोलन नहीं.
अखलाख मारा गया कोई आंदोलन नहीं.
एनआईए अफसर जियाउल हक़ मारा गया कोई आंदोलन नहीं.
नंबर गिनाऊ तो हजार नाम है लेकिन एक भी आंदोलन नहीं.

सूना है करीब 52 हजार बेगुनाह मुसलमान जेल में सडाये जा रहे है. लेकिन इनके लिए कोई आंदोलन नहीं, कोई चर्चा नहीं, इस विषय पर विस्तृत जानकारी एवं प्रचार प्रसार नहीं. जब किस और जाती के एक व्यक्ति का क़त्ल होता है कई आंदोलन किये जाते है जिसमे मुसलमान की दाढ़ी टोपी सबके आगे नजर आती है. लेकिन अकेले मुसलमान के क़त्ल के लिए तो कोई नहीं आता लेकिन 52 हजार बेगुनाहों का जेल में सड़ना यानी उनके परिवार के क़त्ल से कम नहीं. लाखो लोगो के क़त्ल के बावजूद कोई आंदोलन नहीं कोई संगठन नहीं. और हर वक्त मुसलमानों को साथ लेकर होते रहे आंदोलन बेगुनाह आतंकवाद के नाम पर जेल में अपनी जिंदगियां बर्बाद करते मुसलमानों के लिए सिर्फ बोलबच्चन.........!!

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