Thursday, 23 June 2016

अखिलेश यादव मनुवादियों से इतना डरते क्यों हैं ? – मोहम्मद अनस


साध्वी प्राची ने कहा,’यह सही वक्त है भारत को मुसलमानों से मुक्त करने का।’

तमाम बड़े सोशल एक्टिविस्ट, मानवाधिकार कार्यकर्ता, राजनीतिक टिप्पणीकार एवं फेसबुक के महान सेक्यूलर उबल पड़े।

हिंदू धर्म के वरिष्ठ संत शंकराचार्य स्वरुपानंद सरस्वती ने मथुरा हिंसा के बाद बयान दिया,’चूंकि मथुरा हिंसा के पीछे रामवृक्ष यादव है इसलिए यूपी की यादव सरकार उसे कुछ नहीं बोली और यह सब हुआ।’ शंकराचार्य ने कुछ नया नहीं कहा, यह तो धर्म का आधार स्तंभ है। लेकिन स्वतंत्र टिप्पणीकारों, सेक्यूलरों और दीगर कार्यकर्ताओं में कोई आपत्ति नहीं दर्ज की गई? आखिर क्यों भाई? यादव पहचान पर हमला हो रहा है और चुप बैठे हैं। क्या यादव इस देश का नागरिक नहीं ? क्या उसे सत्ता और व्यवस्था चलाने के मौके नहीं मिलने चाहिए, यदि मिल गए तो उसकी जाति को गाली देंगे? ये नहीं चलेगा।

समाजवादी पार्टी और खुद मुख्यमंत्री अखिलेश यादव मनुवादियों से बेइंतहा डरते हैं। जितना सम्मान इस पार्टी में मनुवादियों को दिया जाता है उतना कहीं और नहीं मिलता। अपमान के बदले सम्मान देते हुए किसी को देखा है? मैंने अपनी आंख से देखा है। इस डर का बड़ा कारण है यादवों में आत्मसम्मान की कमी, जाति को लेकर मुखर न होना और मनुवादियों के फेर में फंस कर धर्म की रक्षा हेतु लठैत बन जाना। लठैती खुद की हो तो सही है लेकिन किसी के लिए लठैत बन करके उसकी चाकरी करना मतलब रहम ओ करम पर जीना। आखिर किस बात की कमी है यादवों को? सेना से लेकर पुलिस तक में हैं। सरकारी और गैर सरकारी नौकरियों से लेकर बाहुबली तक यादव हैं। फिर भी ब्राह्मणवादियों के भय क्यों ?

जाति का मुद्दा कमज़ोर होगा तो ब्राह्मणवादी मजबूत होंगे, इसको ध्यान में रखते हुए आरएसएस ने शंकराचार्य के यादव- यादव वाले बयान को दबाने के लिए प्राची को मुसलमान-मुसलमान करने को कहा। यदि किसी यादव को उसकी जाति के सम्बंध में भला बुरा कहा जाए और ऐसा उसी धर्म को मानने वाले सबसे बड़े संत के मुंह से यह सब हो, तो समस्या कौन सी बड़ी है? प्राची वाली या शंकराचार्य वाली ?

यादवों की शादी, उनका मरना जीना, उनकी दिनचर्या उसी शंकराचार्य के बनाए विधि विधान से पूर्ण होती है जो उसकी जाति से नफरत करता है और आलोचना के सबसे निचले स्तर पर जा कर नफरती बोल बोलता है। मेरे लिए शंकराचार्य के बोल अधिक बुरे लगे बनिस्बत प्राची के। मैं जानता हूं कि इस देश से बीस-बाइस करोड़ मुसलमानों को निकालने या हटाने में साध्वी को सात जन्म लेना होगा, तब भी वह सफल हो, इसकी गारेंटी नहीं।

कल मैंने यादवों से अपील की थी कि वे शंकराचार्य का पुतला फूकें। कुछ दो तीन जगह से पुतला दहन के वादे की पुष्टि हुई है लेकिन अभी जलाया नहीं है। देखते हैं उनका जमीर कब जागता है। शंकराचार्य का पुतला दहन होगा तो सीधे ब्राह्मणवादियों को बुरा लगेगा, फिर वे और आक्रमकता से जवाब देंगे  और यहीं से खाई चौड़ी हो जाएगी। तमाम ओबीसी जातियों के खिलाफ वे खुले तौर पर सामने आ गए हैं। प्रोफेसरों की भर्तियों में आरक्षण खत्म किया गया, यही तो दुश्मनी का प्रमाण है। इलाहाबाद में आरक्षण विरोधी आंदोलन के समय भैंस को करेंट लगा कर मारने वाले कोई और नहीं शंकराचार्य के भक्त थे। लोकसेवा आयोग के बोर्ड को अहीर सेवा आयोग लिखने वाले कौन लोग थे? वही जिनका पैर छूते हैं यादव। फिर भी यादव जाति जाने किस चिंता में खुद को उन्हीं के शरण में ले जाती है जो उसको हर दिन अपमानित करते हैं।

धार्मिक विद्वेष की सबके बड़ी खिलाड़ी भाजपा है। उससे हिंदू मुसलमान करके कभी नहीं जीता जा सकता। जाति ही हराएगी भाजपा को। समझ रहे हैं न।

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